की यरवडा सेंट्रल जेल में समझौता हुआ था. इससे विधानसभाओं में 'डिप्रेस्ड
क्लास' के लिए सीटें सुरक्षित की गईं. आजाद भारत के लिए संविधान बनाने के
लिए ब्रिटेन ने 1930 से 1932 के बीच अलग अलग पार्टियों के नेताओं को
गोलमेज कांफ्रेंस के लिए बुलाया गया. महात्मा गांधी पहली और आखिरी बैठक
में शामिल नहीं हुए थे. पहली बैठक में डॉ. अंबेडकर ने ब्रिटिश सरकार के उस
कदम का समर्थन किया जिसमें दलितों के लिए अलग से निर्वाचक मंडल रखने की
सलाह दी गई थी. तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडोनेल्ड ने मुस्लिम,
ईसाई, एंग्लो इंडियन और सिखों के साथ ही दलितों के लिए अलग से निर्वाचक
मंडल बनाने की सलाह दी. यह जनरल इलेक्टोरेट के तहत ही बनाया जाना था.
जिससे दलितों (डिप्रेस्ड क्लास) को दोहरे मतदान की अनुमति मिल जाती. वो
अपने उम्मीदवार साथ ही सामान्य उम्मीदवार के लिए भी चुनाव में शामिल होते.
गांधी ने इसका कड़ा विरोध करते हुए दलील दी कि इससे हिंदू समुदाय में
विभाजन होगा. 20 सितंबर 1932 से वे ब्रिटिश प्रधानमंत्री के प्रस्ताव के
विरोध में आमरण अनशन पर चले गए. जब उनकी हालत बिगड़ने लगी तो 24 सितंबर को
गांधी जी और अंबेडकर के बीच समझौता हुआ जिसे पुणे समझौता या पूना पैक्ट
कहा जाता है. यह तय हुआ कि जनरल इलेक्टोरेट में ही डिप्रेस्ड क्लास के
उम्मीदवारों के लिए सीटें आरक्षित होंगी. उस समय अलग अलग राज्यों की
एसेंबली में कुल मिला कर 148 सीटें दलितों के लिए आरक्षित की गई.
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